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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2645
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।

अथवा
सिद्ध कीजिए कि 'ध्रुवस्वामिनी प्रसाद जी की एक सरस भावपूर्ण, नारी की विवशता और व्यथा से भरी हुई सुन्दर, अभिनय कला श्रृंगार एवं इस युग की नारी भावना का सच्चा प्रतिनिधित्व करने वाली सर्वश्रेष्ठ नाट्यकृति है।
अथवा
पात्र और चरित्र-चित्रण की दृष्टि से 'धुवस्वामिनी' नाटक की समीक्षा कीजिए।

उत्तर-

'ध्रुवस्वामिनी' नाटक प्रसाद जी की प्रौढ़तम् सर्वश्रेष्ठ कृति है। इस नाटक में उत्तम नाटक की सभी विशेषताएँ उपलब्ध होती हैं। 'ध्रुवस्वामिनी' के आधार पर प्रसाद जी की नाट्य कला का संक्षेप में विवेचन इस प्रकार है -

कथावस्तु - प्रसाद जी के नाटकों की कथावस्तु का आधार इतिहास है। उन्होंने अपने प्रायः सभी नाटकों का कथानक भारतीय संस्कृति के गौरवमय इतिहास के पृष्ठों से ग्रहण किये हैं। ध्रुवस्वामिनी नाटक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के आधार पर लिखा गया है, परन्तु कहीं-कहीं पर नाटककार ने घटनाओं की परम्परा को ठीक करने के लिए कल्पना का ही आश्रय लिया है।

यह नाटक तीन अंकों में विभाजित है। इसमें भारतीय नाट्यशास्त्र के अनुसार नाटक की पाँचों कार्यावस्थाओं, अर्थ-प्रकृतियाँ और सन्धियों का सफल निर्वाह दृष्टिगोचर होता है। साथ ही प्रसाद जी ने इस नाटक में पाश्चात्य नाट्य शैली को भी अपनाया है।

इस नाटक की कथावस्तु सुसंगठित, स्वाभाविक, संक्षिप्त, प्रभावोत्पादक तथा सुलझी हुई है। इस प्रकार प्रसाद जी के अन्य नाटकों की अपेक्षा कथानक की दृष्टि से 'ध्रुवस्वामिनी' एक सफल, सजीव, रोचक, कलात्मक और सुन्दर रचना है।

पात्र और चरित्र चित्रण - प्रसाद जी अपनी अन्य नाट्य-कृतियों की अपेक्षा इस नाटक में पात्रों * का चरित्र-चित्रण बड़े कलात्मक और सजीव ढंग से प्रस्तुत करने में सफल रहे हैं। इस नाटक में घटनाओं की भरमार नहीं है। इसमें प्रत्येक घटना किसी-न-किसी पात्र के चरित्र के किसी अंग पर अवश्य प्रकाश डालती है। प्रसाद जी ने जीवन के विविध चित्रों को प्रस्तुत करने के लिए 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक में अनेक प्रकार के पात्रों का प्रयोग किया है, जैसे ऐतिहासिक और काल्पनिक पात्र, स्त्री और पुरुष पात्र, स्थिर और गतिशील पात्र, आदर्शवादी और यथार्थ, पात्र, व्यक्तिगत और वर्गगत पात्र तथा सद् और असद् पात्र। नाटककार ने बड़े ही स्वाभाविक और संजीव ढंग से इस नाटक के पात्रों का चरित्रांकन किया है। इस प्रकार यह नाटक पात्र - योजना या चरित्र चित्रांकन की दृष्टि से एक सफल रचना है। इसके पात्रों के चरित्र में अन्तर्द्वन्द्व और नियतिवाद की प्रधानता है। प्रसाद जी ने जीवन के विविध चित्रों को प्रस्तुत करने के लिये अपने 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक में अनेक प्रकार के पात्रों का प्रयोग किया है। इसके नाटकों में विविधता और जीवन के रंग-बिरंगे चित्र प्रस्तुत करने में नाटककार को प्रशंसनीय सफलता प्राप्त हुई। 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त हुये विविध प्रकार के पात्रों का विवरण इस प्रकार है।

ऐतिहासिक और काल्पनिक पात्र - 'ध्रुवस्वामिनी' ऐतिहासिक नाटक है। इस नाटक को सरस तथा रोचक बनाने के लिये नाटककार ने कल्पना से काम लिया है। अतः इस नाटक में ऐतिहासिक और काल्पनिक दोनों प्रकार के पात्रों का प्रयोग दृष्टिगोचर होता है। इसमें 'चन्द्रगुप्त', 'ध्रुवस्वामिनी', 'रामगुप्त' और 'शकराज' ऐतिहासिक पात्रों की कोटि में आते हैं। कोमा, मिहिरदेव, मन्दाकिनी, पुरोहित आदि पात्र काल्पनिक हैं।

कथोपकथन या सम्वाद - प्रसाद जी एक कुशल नाटककार थे। अतः उन्होंने अपने इस नाटक में कुशल शिल्पी की भाँति सुन्दर तथा प्रभावशाली कथोपकथन की योजना की है। इस नाटक के संवाद अपने लक्ष्य में पूर्ण सफल है। साराँश यह है कि 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक के संवाद व्यवहारिक, पात्रानुकूल, स्पष्ट, संक्षिप्त, तर्कपूर्ण, काव्यात्मक, सार्थक, रोचक, संयत, गम्भीर तथा रस-सिद्धि में पूर्ण सहायक हैं।

भाषा-शैली- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक की भाषा प्रसाद जी के अन्य नाटकों की अपेक्षा सरल, स्पष्ट और बोधगम्य है, परन्तु साथ ही शुद्ध साहित्यिक और परिष्कृत है। इस नाटक में नाटककार ने भावात्मक, चित्रात्मक, अलंकारिक और हास्य व्यंग्य प्रधान शैली का प्रयोग किया है।

देशकाल या वातावरण - 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक एक ऐतिहासिक नाटक है। इसमें नाटककार ने देशकाल के निर्वाह का पूर्ण ध्यान रखा है। इस नाटक में प्रसाद जी ने हमारे अतीत के गौरव की एक भव्य झाँकी प्रस्तुत की है। 'ध्रुवस्वामिनी' में तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक परिस्थितियाँ साकार हो उठी हैं। साथ ही वर्तमान चेतना भी सजीव हो उठी है।

उद्देश्य - 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक एक ऐतिहासिक नाटक होते हुए भी समस्या प्रधान नाटक है। इसमें प्रधान रूप से गुप्त कालीन भारतीय नारी की समस्याओं का अंकन किया गया है। इसके अतिरिक्त राज्याधिकार और विदेशी आक्रमण की समस्या का चित्रण भी प्रसाद जी ने अपने इस नाटक में किया है। नाटककार की महान् विशेषता यह है कि उसने समस्याओं का अंकन करते समय उनका समाधान भी प्रस्तुत किया है। मूल रूप से इस नाटक का प्रमुख उद्देश्य नारी समस्या का अंकन है।

रस- योजना - 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक में प्रसाद जी ने रस की प्रतिष्ठा की है, इसमें वीर रस की प्रधानता है, परन्तु सहायक के रूप में श्रृंगार रस की भी सफल अभिव्यक्ति दृष्टिगोचर होती है। साथ ही हास्य, भयानक, करुण रसों की अभिव्यक्ति के भी दर्शन होते हैं।

अभिनेयता - प्रसाद जी का यह नाटक रंगमंच तथा अभिनय की दृष्टि से पूर्ण सफल है। परन्तु कतिपय दोष भी दृष्टिगोचर होते हैं, जैसे कहीं-कहीं पर भाषा अत्यन्त क्लिष्ट हो गई है तथा कहीं कथोपकथन भी बड़े हो गये हैं। इसके अतिरिक्त भारतीय दृष्टि से रंगमंच पर युद्ध तथा हत्या दिखाना वर्जित है। इस नाटक में चन्द्रगुप्त और शकराज का युद्ध दिखाया गया है। साथ ही रामगुप्त और शकराज की हत्या भी दिखाई गई है, परन्तु इस नाटक में अभिनय के गुणों के समक्ष ये दोष नगण्य हैं।

संगीतात्मकता (गति-योजना ) - प्रसाद जी की 'ध्रुवस्वामिनी' ऐसी कृति है जो रसवादी और समस्या प्रधान नाटकों के बीच की कड़ी है। इसलिये आपने इसमें अधिक गीतों का प्रयोग नहीं किया है। इसमें केवल चार गीतों का प्रयोग किया है। दो गीत प्रथम अंक में मन्दाकिनी के द्वारा गाये गये हैं और द्वितीय अंक में प्रथम गीत कोमा के द्वारा तथा दूसरा गीत शकराज की नर्तकियों के द्वारा गाया गया है। ये चारों गीत अत्यन्त स्वाभाविक, मधुर तथा रस-परिपाक में अपूर्व सहायक सिद्ध हुये हैं। इस प्रकार संगीत योजना व गीत योजना की दृष्टि से 'ध्रुवस्वामिनी' सफल नाट्य कृति है।

दार्शनिकता और नियतिवाद - 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक के पात्रों में दार्शनिकता और नियतिवाद की भावना दृष्टिगोचर होती है। मिहिरदेव का चरित्र एक दार्शनिक आचार्य का चरित्र है। इस नाटक के प्रमुख पात्र नियतिवाद से प्रभावित है। इस नाटक की नायिका 'ध्रुवस्वामिनी' घोर नियतिवादी है। इसी प्रकार चन्द्रगुप्त और शकराज जैसे पुरुषार्थ में विश्वास रखने वाले पात्र भी नियतिवाद से प्रभावित हैं।

भारतीय तथा पाश्चात्य कला का समन्वय - प्रसाद एक समन्वयवादी कलाकार थे। उन्होंने अपने इस नाटक में भारतीय और पाश्चात्य नाटक शैलियों का सुन्दर समन्वय स्थापित किया है। प्रसाद जी का समन्वयवादी रूप इस नाटक में अन्य सभी नाटकों से अधिक मुखरित हो उठा है। उन्होंने इस नाटक में भारतीय नाट्य परम्परा के मृत्यु-तत्व, नायक और रस तीनों का महत्व प्रदान किया है साथ ही पाश्चात्य नाट्य शैली से 'अविर्भूत होकर संस्कृत नाटकों की परम्परा के अनुरूप विष्कम्भक, नन्दी, सूत्रधार, भरत- वाक्य आदि को स्थान नहीं दिया है। इसके अतिरिक्त भारतीय दृष्टिकोण के अनुसार रंग-मंच पर हत्या, मृत्यु, आलिंगन आदि के दृश्य दिखाना वर्जित है, परन्तु इस नाटक में ऐसे दृश्यों की योजना की गई है। जैसे शकराज और रामगुप्त का वध तथा 'ध्रुवस्वामिनी' द्वारा चन्द्रगुप्त का आलिंगन। वास्तव में सत्य तो यह है कि इस नाटक की आत्मा भारतीय है तथा शरीर पाश्चात्य है क्योंकि इसमें असत् पर सत् की विजय दिखाई है।

सामाजिक समस्या - प्रसाद के नाटक संस्कृति प्रधान होते हुए भी जीवन की विविध समस्याओं को अपने में संजोये हुये हैं। आपने 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक में विवाह समस्या का अंकन किया है। यह समस्या भारतीय समाज की शाश्वत् समस्या है। 'ध्रुवस्वामिनी' का पति रामगुप्त कायर, भीरु, क्लीव, अयोग्य तथा दुर्बल है। ऐसी स्थिति में प्रसाद जी ने चन्द्रगुप्त के साथ 'ध्रुवस्वामिनी' का विवाद उचित ठहराया है।

राष्ट्रीय जागरण - प्रसाद के नाटकों में देशप्रेम की भावना अत्यन्त प्रखर रूप से प्रकट हुई है। आपके समस्त नाट्य साहित्य का प्राण राष्ट्रीय जागरण है। 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक में भी प्रसाद जी के राष्ट्र- प्रेम का महान सन्देश प्रदान किया है। मन्दाकिनी और चन्द्रगुप्त दोनों राष्ट्र-प्रेमी हैं।

काव्यात्मकता - प्रसाद मूल रूप से एक कवि थे। उनका कवि रूप उनके नाटकों पर छाया हुआ है। 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक की उनकी कवि कल्पना के रंगीन पंखों की छाया में साँस ले रहा है। इस नाटक में प्रसाद जी को जहाँ भी अवसर मिला है, वहीं उनके कवि रूप ने मधु उड़ेल दिया है। 

उपसंहार - उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि प्रसाद जी का 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक एक अनुपम रचना है। यह नाट्य-कला के सभी तत्वों के आधार पर उच्चकोटि की रचना है। यह नाट्य कृति अनुपम कथा, अपूर्व पात्र, सुन्दर संवाद, परिष्कृत भाषा शैली, महान् उद्देश्य, सजीव वातावरण, सरस संगीत और भारतीय तथा पाश्चात्य नाट्य-कला को अपने अन्तर में संजोये हुए हैं। यह प्रसाद जी की अन्तिम प्रौढ़तम् रचना है। प्रसाद जी की नाट्य कला का चरम विकास इस कृति में दृष्टिगोचर होता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
  8. प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  10. प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
  11. प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
  13. प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
  14. प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
  17. प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
  19. प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
  22. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
  24. प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
  25. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
  28. प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
  32. प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
  33. प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
  35. अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
  36. प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
  38. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
  39. प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
  40. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  41. प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  42. अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
  43. प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
  44. प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
  45. प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
  46. अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
  47. प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
  48. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
  50. अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
  51. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
  53. प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
  54. अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
  55. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
  57. प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  58. अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
  59. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  60. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  61. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  66. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
  68. प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
  69. अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
  70. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  73. अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
  74. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
  75. प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
  77. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  78. प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
  81. प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
  82. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  84. अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
  85. प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
  87. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
  88. प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  89. अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
  91. प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
  92. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
  93. अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  94. प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
  95. प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
  96. प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
  97. अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
  98. प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
  99. प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
  100. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  101. अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
  102. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
  103. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
  104. अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
  105. प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
  106. प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  107. प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
  108. प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
  109. अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
  110. प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  112. प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  113. अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  114. प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
  115. प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
  116. प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
  117. अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
  118. प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
  119. प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  120. अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
  121. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  122. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  123. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  124. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
  125. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
  127. अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
  128. प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
  129. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
  130. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
  131. अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
  132. प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
  133. प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  135. अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
  136. प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
  137. प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  138. अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
  140. अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
  141. प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
  142. प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  143. अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
  144. प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
  145. प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  146. प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।

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